
मृत्यु जीवन का ऐसा सत्य है जिसे कोई भी व्यक्ति टाल नहीं सकता। जब एक इंसान इस संसार में जन्म लेता है, तो उसकी नियति में एक दिन इस शरीर को त्यागना निश्चित होता है। परंतु यह त्याग केवल शारीरिक होता है—शरीर में स्थित ऊर्जा, जिसे आत्मा कहा जाता है, वह नष्ट नहीं होती, बल्कि यह निरंतर रूपांतरित होती रहती है। मृत्यु के पश्चात आत्मा एक विशेष यात्रा पर निकलती है, जो कई बार पीड़ादायक और विचित्र अनुभवों से भरी होती है।
अचेतन अवस्था के क्षण
जब आत्मा शरीर से बाहर निकलती है, तब कुछ समय तक वह एक अचेतन अवस्था में रहती है। यह अनुभव वैसा होता है जैसे कोई व्यक्ति अत्यधिक थकान के बाद गहरी नींद में चला गया हो। आत्मा को यह आभास ही नहीं होता कि वह शरीर से अलग हो चुकी है। लेकिन कुछ ही क्षणों में यह स्थिति बदल जाती है। आत्मा सचेत हो जाती है और जैसे-जैसे चेतना लौटती है, वह खड़ी हो जाती है।
समान व्यवहार की अनुभूति
मृत्यु के तुरंत बाद आत्मा का व्यवहार उसी प्रकार होता है जैसा शरीर में रहते समय होता था। आत्मा को इस परिवर्तन का अनुभव नहीं होता कि वह अब भौतिक शरीर का हिस्सा नहीं रही। वह अपने दैनिक व्यवहार, बोलचाल और गतिविधियों को जारी रखती है, यह समझे बिना कि अब कोई उसे देख या सुन नहीं सकता।
बेचैनी और छटपटाहट की दशा
जब आत्मा अपने प्रियजनों को देखती है, तो उसमें एक बेचैनी उत्पन्न होती है। वह उन्हें पुकारती है, कुछ कहना चाहती है, लेकिन उसकी आवाज भौतिक नहीं होती। यह ध्वनि एक प्रकार की अभौतिक तरंग होती है जिसे जीवित मनुष्य महसूस नहीं कर सकते। इस असमर्थता से आत्मा में छटपटाहट और दुख उत्पन्न होता है। वह अपने विचार और भावनाएं व्यक्त करना चाहती है लेकिन उसका कोई उत्तरदाता नहीं होता।
संचार की असंभवता और मोहजाल
शरीर में वर्षों तक रहने के कारण आत्मा पर संसारिक माया और मोह का आवरण चढ़ा होता है। मृत्यु के बाद भी यह मोह नहीं टूटता। आत्मा बार-बार अपने मृत शरीर और परिवारजनों को देखकर उनसे बात करने की चेष्टा करती है, लेकिन वह कभी सफल नहीं होती। यह विफलता आत्मा को और अधिक पीड़ित कर देती है, जिससे उसका यात्रा मार्ग और भी कठिन हो जाता है।