
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह चुनावों में निर्विरोध (Unopposed) चुने जाने वाले उम्मीदवारों के लिए कुछ सख्त नियम बनाए। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) की धारा 53(2) की वैधता पर सुनवाई के दौरान यह अहम टिप्पणी की। इस धारा के तहत यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवारों की संख्या सीटों के बराबर होती है, तो मतदान कराए बिना उन्हें निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इस प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है ताकि लोकतंत्र की मूल भावना अक्षुण्ण रहे।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और केंद्र सरकार से अपेक्षाएँ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्विरोध (Unopposed Election) चुने जाने वाले उम्मीदवारों को भी जीतने के लिए न्यूनतम प्रतिशत वोट प्राप्त करना आवश्यक होना चाहिए। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के प्रावधान से लोकतांत्रिक प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और मजबूत होगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस विषय पर विचार कर नए नियमों का निर्माण करने को कहा है। निर्वाचन आयोग के प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, अब तक संसदीय चुनावों में केवल नौ बार ही उम्मीदवार निर्विरोध विजयी रहे हैं, जबकि विधानसभा चुनावों में ऐसे मामले अपेक्षाकृत अधिक संख्या में सामने आए हैं।
निर्विरोध निर्वाचन की मौजूदा प्रक्रिया और उसका प्रभाव
वर्तमान में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) के अनुसार, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक उम्मीदवार रह जाता है, तो उसे निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में मतदाताओं की राय का कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होता, जिससे लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को चोट पहुँचने का खतरा रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए सुझाव दिया है कि भले ही कोई उम्मीदवार निर्विरोध हो, उसे एक निश्चित प्रतिशत वोट प्राप्त करना अनिवार्य बनाया जाए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि जनता की वास्तविक सहमति उस उम्मीदवार को प्राप्त हो।
निर्विरोध निर्वाचन में न्यूनतम वोट प्रतिशत की आवश्यकता क्यों
पीठ का मानना है कि यदि कोई उम्मीदवार निर्विरोध (Unopposed Candidate) भी हो, तो उसे कम से कम कुल संभावित वोटों में से एक तयशुदा प्रतिशत प्राप्त करना चाहिए। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान बना रहेगा और यह भी सुनिश्चित होगा कि कोई उम्मीदवार केवल तकनीकी कारणों से बिना जनसमर्थन के सत्ता में न आ जाए। वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने अदालत को बताया कि विधानसभा चुनावों में ऐसे मामले अधिक होते हैं, जिससे यह मुद्दा और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अपेक्षा की है कि वह जल्द से जल्द इस विषय में विचार कर उचित कदम उठाए।