
मध्यप्रदेश (MP) के सहकारी बैंकों की हालत दिनों-दिन बदतर होती जा रही है। हाल ही में सामने आए मामलों ने राज्य की कोऑपरेटिव बैंकिंग व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बुरहानपुर जिले के नेपानगर नागरिक सहकारी बैंक (Nepanagar Nagrik Sahkari Bank) में हुआ 8.85 करोड़ रुपए का घोटाला इस बात की ताजा मिसाल है। इस बैंक में वर्षों से अपनी गाढ़ी कमाई जमा करने वाले जमाकर्ता अब दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
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घोटाले के कारण डूब गए जमाकर्ताओं के करोड़ों
नेपानगर के इस नागरिक सहकारी बैंक में स्थानीय नागरिकों ने सालों तक भरोसे के साथ अपनी जमा राशि रखी थी। लेकिन अब खुलासा हुआ है कि बैंक के कुछ कर्मचारियों ने घोर वित्तीय अनियमितताओं को अंजाम देते हुए करीब 8 करोड़ 85 लाख रुपए का गबन किया है। इस घोटाले के चलते बैंक पूरी तरह कंगाल हो चुका है, नतीजतन जमाकर्ताओं को न उनकी मूल राशि (Principal Amount) मिल रही है और न ही जमा राशि पर मिलने वाला ब्याज (Interest)।
बीमार और बुजुर्ग जमाकर्ता हो रहे दर-बदर
इस घोटाले की सबसे भयावह तस्वीर उन परिवारों की है, जो अपनी जिंदगी की जमा पूंजी इस बैंक में जमा कर बैठे थे। कई बुजुर्ग और गंभीर बीमारी से पीड़ित जमाकर्ता इलाज के लिए पैसे नहीं जुटा पा रहे हैं। कुछ तो भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। पीड़ितों का कहना है कि वो पिछले दो वर्षों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
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संचालक मंडल की शिकायतें दो साल से अनसुनी
बैंक में गबन की शिकायतें कोई नई नहीं हैं। बताया गया है कि संचालक मंडल ने करीब दो वर्षों पहले ही संबंधित अधिकारियों को इस बारे में सूचित कर दिया था। बावजूद इसके न ही कोई वित्तीय ऑडिट समय पर हुआ और न ही बैंक के संचालन में कोई सुधारात्मक कदम उठाया गया। जमाकर्ताओं का कहना है कि घोटाले की गंभीरता के बावजूद अब तक केवल कुछ कर्मचारियों को ही गिरफ्तार किया गया है, जबकि कई आरोपी अब भी फरार हैं।
जिला कलेक्टर ने दिया 6 मई तक कार्रवाई का आश्वासन
घोटाले से नाराज और परेशान जमाकर्ता हाल ही में बुरहानपुर के कलेक्टर हर्ष सिंह से मिलने पहुंचे। उन्होंने अपनी जमाराशि वापस दिलाने की मांग की। कलेक्टर ने सभी बातों को गंभीरता से सुनते हुए भरोसा दिलाया कि वे 6 मई तक उचित कार्रवाई करेंगे और इस मामले में जल्द हल निकालेंगे। हालांकि यह देखना बाकी है कि इस आश्वासन के बाद वास्तव में कितनी त्वरित और प्रभावी कार्रवाई होती है।
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सहकारी बैंकों में लगातार बढ़ रही वित्तीय अनियमितताएं
मध्यप्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं है। राज्य के कई सहकारी बैंक (Cooperative Banks) पहले ही आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। कई बैंकों में तो बैंकिंग सेवाएं लगभग बंद हो चुकी हैं और जमाकर्ताओं की रकम वर्षों से अटकी हुई है। इससे न केवल आम नागरिकों का भरोसा डगमगाया है, बल्कि पूरे सहकारी बैंकिंग ढांचे की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठने लगे हैं।
जमाकर्ताओं की मांग – हो न्याय, मिले मुआवजा
पीड़ित जमाकर्ताओं की मांग है कि उन्हें सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाए और दोषियों को जल्द से जल्द सजा दी जाए। साथ ही सरकार से यह भी अपील की जा रही है कि ऐसे बैंकों की सख्ती से निगरानी और ऑडिट प्रक्रिया चलाई जाए ताकि भविष्य में कोई और इस तरह से धोखा न खा सके।
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निष्कर्ष: बैंकिंग विश्वास का संकट और सरकारी भूमिका
नेपानगर सहकारी बैंक में हुआ यह घोटाला महज एक बैंक की कहानी नहीं है, बल्कि यह मध्यप्रदेश की सहकारी बैंकिंग व्यवस्था की विफलता का आईना है। इस तरह के मामलों से जनता और बैंकिंग सिस्टम के बीच का विश्वास लगातार टूट रहा है। सरकार और संबंधित संस्थानों को चाहिए कि वे समय रहते सख्त कदम उठाएं और ऐसे बैंकों को दोबारा भरोसे के लायक बनाएं।