
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वायरल खबर ने कई परिवारों में हलचल मचा दी कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया है। इस खबर ने जहां एक ओर भ्रम फैलाया, वहीं दूसरी ओर लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या बेटियों के Property Rights पर खतरा मंडरा रहा है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की हकीकत कुछ और है, जो समझना बेहद जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक विशेष केस पर आधारित था
Supreme Court ने यह फैसला एक खास केस के संदर्भ में दिया, जिसमें बेटी ने स्वेच्छा से अपने पिता से सभी पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते खत्म कर लिए थे। कोर्ट ने कहा कि जब पिता ने पहले ही बेटी की शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी निभा दी है और बेटी ने खुद संबंधों से दूरी बना ली हो, तो ऐसे में वह पिता की संपत्ति, चाहे वह पैतृक हो या स्व-अर्जित, पर दावा नहीं कर सकती। यह फैसला इस एक मामले तक ही सीमित है और इसे सभी बेटियों के अधिकारों पर लागू नहीं किया जा सकता।
आम बेटियों के अधिकार बरकरार हैं
यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि इस फैसले का उन बेटियों पर कोई असर नहीं है, जिनका अपने पिता से सामान्य पारिवारिक संबंध बना हुआ है। विवाहिता, अविवाहित, तलाकशुदा या विधवा बेटियों को अब भी पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर हिस्सा मिलता है, जैसा कि Hindu Succession Act, 1956 के 2005 संशोधन में निर्धारित किया गया था। इस संशोधन के बाद बेटियों को जन्म से ही पैतृक संपत्ति की उत्तराधिकारी मान लिया जाता है।
स्व-अर्जित संपत्ति पर अलग होते हैं नियम
अगर पिता की संपत्ति स्व-अर्जित है और उन्होंने उसकी वसीयत (Will) बना दी है या किसी को रजिस्ट्री के जरिए ट्रांसफर कर दी है, तो उस पर बेटी का हक नहीं बनता। लेकिन यदि वसीयत नहीं बनी हो, तो फिर संपत्ति का बंटवारा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत होता है, जिसमें बेटी को भी पूरा हक मिलता है। ऐसे मामलों में बेटी का दावा पूरी तरह वैध माना जाता है।
सोशल मीडिया की अफवाहों से सावधान रहें
2025 में आए इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर जो भ्रम फैलाया जा रहा है, वह आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने न तो बेटियों के समग्र Property Rights को खारिज किया है, न ही उनके पैतृक संपत्ति में अधिकार को चुनौती दी है। यह फैसला केवल एक विशेष परिस्थिति में आया और इसे सभी बेटियों पर लागू करना गलत होगा।
बेटियों को संपत्ति में कब नहीं मिलेगा अधिकार?
यदि बेटी ने सामाजिक या कानूनी रूप से पिता से संबंध समाप्त कर लिए हों, या कोर्ट में जाकर पिता से कोई संबंध रखने से इनकार कर दिया हो, तो उसका दावा कमजोर हो सकता है। साथ ही यदि पिता ने संपत्ति की स्पष्ट वसीयत किसी और के नाम कर दी हो, तो बेटी को उस पर अधिकार नहीं मिलता। लेकिन ऐसे उदाहरण बहुत सीमित और विशेष परिस्थितियों वाले होते हैं।
बेटियों के लिए पूरी कानूनी सुरक्षा उपलब्ध है
आज भी शादीशुदा, तलाकशुदा या अविवाहित बेटियों को पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार मिलता है। सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी किसी भी तरह से इन मौलिक अधिकारों को समाप्त नहीं करती। इसके अलावा यदि वसीयत नहीं है और संपत्ति पैतृक है, तो कानूनन बेटी को उतना ही हिस्सा मिलता है जितना बेटे को। यहां तक कि यदि बेटी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके बच्चों को भी उसका हिस्सा मिल सकता है।
अफवाहों से बचें, कानूनी सलाह लें
अक्सर संपत्ति से जुड़े मामलों में आधी जानकारी खतरनाक साबित हो सकती है। अगर किसी को लगता है कि उनके Property Rights प्रभावित हो सकते हैं, तो उन्हें तुरंत किसी अनुभवी वकील से सलाह लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की सही व्याख्या केवल कानूनी विशेषज्ञ ही कर सकते हैं। किसी भी विवाद की स्थिति में कोर्ट की मदद ली जा सकती है।