Tujia Tribe Marriage: इस जनजाति में दुल्हन करती है ऐसा काम, शादी की ये रस्म जानकर चौंक जाएंगे

तुजिया जनजाति की "रोती हुई शादी" रस्म एक अनोखा विवाह अनुष्ठान है, जिसमें दुल्हन शादी से पहले 30 दिन तक भावनात्मक रूप से रोती है। यह परंपरा विदाई, पारिवारिक प्रेम और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है। रोने के गीतों के साथ निभाई जाने वाली यह रस्म आज भी तुजिया समाज की सांस्कृतिक पहचान और पारिवारिक मूल्यों को दर्शाती है।

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Tujia Tribe Marriage: इस जनजाति में दुल्हन करती है ऐसा काम, शादी की ये रस्म जानकर चौंक जाएंगे
Tujia Tribe Marriage

चीन के सिचुआन प्रांत में रहने वाली तुजिया जनजाति (Tujia Tribe) की “रोती हुई शादी” (Crying Marriage) एक अनोखी और भावनात्मक विवाह रस्म है, जिसमें दुल्हन को अपनी शादी से पहले 30 दिन तक रोज़ाना रोने की परंपरा निभानी होती है। यह रस्म केवल भावनाओं का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक अनुष्ठान है जो परिवार और समाज के प्रति प्रेम, सम्मान और विदाई की भावनाओं को दर्शाता है।

कैसे निभाई जाती है “रोने की रस्म”

इस रस्म की शुरुआत शादी से 30 दिन पहले होती है। पहले सप्ताह में दुल्हन अकेले रोती है। दूसरे सप्ताह से उसकी मां साथ आती है, फिर तीसरे सप्ताह में दादी, और अंततः अन्य महिला रिश्तेदार भी इस सांस्कृतिक अनुष्ठान में भाग लेती हैं। यह केवल सामान्य रोना नहीं होता, बल्कि “रोने का गीत” (Crying Marriage Song) के माध्यम से वे पारिवारिक प्रेम और विदाई की भावनाओं को सुरों और शब्दों में पिरोती हैं।

भावनाओं का सांस्कृतिक अनुष्ठान

यह रस्म तुजिया समाज में गहरी सांस्कृतिक पहचान रखती है। रोने के इस क्रम को दुल्हन की भावनात्मक बुद्धिमत्ता और पारिवारिक मूल्यों के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह माना जाता है कि जो दुल्हन इस परंपरा को भावपूर्ण और श्रद्धा से निभाती है, वह परिवार और समाज में सम्मान अर्जित करती है। यह रोना समाज में उसकी परिपक्वता और आत्मिक मजबूती को भी दर्शाता है।

“रोने का गीत” और सामूहिक भावनाओं का संगम

Cryinging Marriage Song इस रस्म का महत्वपूर्ण भाग होता है। इसमें दुल्हन और उसकी महिला रिश्तेदार पारंपरिक गीत गाती हैं जो पीढ़ियों से चली आ रही भावनाओं और कहानियों को आगे बढ़ाते हैं। इन गीतों में विदाई का दर्द, बचपन की यादें, पारिवारिक प्रेम और नए जीवन की ओर पहला कदम शामिल होता है। यह रस्म केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक जीवित सांस्कृतिक धरोहर है।

समय के साथ बदलती परंपरा

हालांकि आधुनिकता के प्रभाव से यह रस्म अब कुछ शहरी इलाकों में कम प्रचलित हो गई है, लेकिन तुजिया जनजाति के ग्रामीण हिस्सों में यह अब भी जीवित है। बदलते समय के बावजूद, यह रस्म आज भी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक जुड़ाव को मजबूती देती है। इस रस्म के जरिए तुजिया समाज अपनी परंपरा को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने का कार्य करता है।

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