
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्या उसहैत में एक छात्रा को माथे पर टीका और हाथ में कलावा पहनकर आने पर रोकने का मामला इन दिनों सुर्खियों में है। यह विवाद न सिर्फ एक विद्यालय के नियमों की चर्चा में है, बल्कि इससे धार्मिक प्रतीकों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्कूल अनुशासन के बीच संतुलन की बहस भी शुरू हो गई है। छात्रा के परिजनों की शिकायत पर बीएसए ने मामले की जांच का आदेश दिया है और बीईओ से तीन दिन में रिपोर्ट तलब की है।
विवाद की शुरुआत
उसहैत कस्बे की रहने वाली एक छात्रा ने हाल ही में पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्या उसहैत में कक्षा छह में दाखिला लिया था। छात्रा रोजाना माथे पर टीका और हाथ में कलावा बांधकर स्कूल जाती थी। आरोप है कि स्कूल की दो महिला शिक्षिकाओं ने उसे ऐसा न करने की चेतावनी दी। एक शिक्षिका ने कहा, “कल से टीका लगाकर मत आना,” और दूसरी ने कहा, “कलावा काटकर स्कूल आना।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विद्यालय में ऐसे धार्मिक चिह्नों का प्रदर्शन नियमों के विरुद्ध है, और यदि छात्रा को पढ़ाई जारी रखनी है तो उसे इन नियमों का पालन करना होगा।
परिवार का आक्रोश और प्रशासनिक कार्रवाई
डरी-सहमी छात्रा ने यह बात घर पर बताई तो परिजन आक्रोशित हो उठे। छात्रा के भाई ने इस घटना की शिकायत बीएसए (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) वीरेंद्र कुमार सिंह से की और शिक्षिकाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। इसके बाद छात्रा का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे मामला और गंभीर हो गया। बीएसए ने बीईओ (खंड शिक्षा अधिकारी) ओमप्रकाश को तीन दिन के भीतर जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
विद्यालय प्रशासन की सफाई और प्रिंसिपल की प्रतिक्रिया
विद्यालय के प्रधानाचार्य तैयब अली ने बताया कि जिस दिन यह घटना हुई, वे अवकाश पर थे। उन्होंने कहा कि “हमारे विद्यालय में किसी भी बच्चे को इस तरह मना नहीं किया जाता है। हो सकता है कि शिक्षिकाओं ने बच्चों के हित में कुछ कहा हो, जिसे गलत तरीके से समझा गया हो।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस संबंध में बच्चों की ओर से कभी कोई शिकायत नहीं आई।
स्थानीय लोगों और समाज की प्रतिक्रिया
इस मामले ने न सिर्फ प्रशासन को कार्रवाई के लिए मजबूर किया, बल्कि स्थानीय समाज में भी नाराजगी पैदा कर दी है। विद्यालय में कई लोग पहुंचे और अपनी आपत्ति जताई। कुछ लोगों का मानना है कि यह धार्मिक आस्था और पहचान पर हमला है, जबकि कुछ का मानना है कि स्कूल में अनुशासन और समानता बनाए रखने के लिए धार्मिक प्रतीकों से दूरी आवश्यक है।