
देश की शीर्ष अदालत ने एक अहम और दूरगामी असर डालने वाले फैसले में स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा किसानों की भूमि का अधिग्रहण चाहे जब भी हुआ हो, उन्हें मुआवजा और ब्याज उसी तिथि से मिलेगा जब भूमि का अधिग्रहण हुआ था। इस निर्णय ने न सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूती दी है, बल्कि कानूनी स्पष्टता भी प्रदान की है।
2019 के तरसेम सिंह फैसले को मिला पूर्वव्यापी प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां शामिल थे, ने 2019 में दिए गए तरसेम सिंह मामले के ऐतिहासिक निर्णय को दोहराया और स्पष्ट किया कि इस फैसले का लाभ केवल भविष्य के मामलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूर्वव्यापी रूप से भी लागू होगा। अदालत ने एनएचएआई की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मांग की गई थी कि इस निर्णय को केवल भविष्य में लागू किया जाए और पहले से निपट चुके मामलों को दोबारा न खोला जाए।
फैसले में न्याय की गहराई और तर्क की मजबूती
पीठ ने स्पष्ट किया कि न्याय केवल तकनीकी सीमाओं का पालन करना नहीं, बल्कि समानता और निष्पक्षता को बनाए रखना भी है। यदि फैसले को भविष्य तक सीमित किया जाए, तो वही किसान जो 31 दिसंबर 2014 को अपनी जमीन खो चुके थे, उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा, जबकि अगले ही दिन यानी 1 जनवरी 2015 को अधिग्रहीत भूमि वाले किसान को मुआवजा और ब्याज का लाभ मिल जाएगा। यह अंतर न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध होता, और इसलिए अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
किसानों के हितों की रक्षा की दिशा में मजबूत कदम
इस फैसले से उन हजारों किसानों को राहत मिलेगी जिनकी जमीनें 1997 से 2015 के बीच अधिग्रहित की गई थीं और जिन्हें अब तक समुचित मुआवजा नहीं मिला था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसका निर्णय उन मामलों को फिर से खोलने का आदेश नहीं देता जो पहले ही अंतिम रूप ले चुके हैं, बल्कि उन किसानों को न्याय दिलाने पर केंद्रित है जो इस प्रक्रिया में पीछे रह गए थे।