Caste Census Reservation Update: अब लागू होगा आरक्षण में ‘कोटे के भीतर कोटा’? पीएम की घोषणा के बाद NDA में हलचल

जाति जनगणना की घोषणा के बाद भाजपा के सहयोगी दलों ने ओबीसी और एससी आरक्षण में उपवर्गीकरण की मांग को तेज कर दिया है। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग जोर पकड़ रही है। कई राज्यों में 'कोटा के भीतर कोटा' लागू किया जा चुका है। यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में निर्णायक हो सकता है यदि केंद्र सरकार शीघ्र निर्णय ले।

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Caste Census Reservation Update: अब लागू होगा आरक्षण में 'कोटे के भीतर कोटा'? पीएम की घोषणा के बाद NDA में हलचल
Caste Census Reservation Update

जाति जनगणना की घोषणा के बाद भारतीय राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई है, जो ‘कोटा के भीतर कोटा’ की अवधारणा पर केंद्रित है। विशेष रूप से भाजपा के सहयोगी दल ओबीसी और एससी समुदायों के भीतर उप-वर्गीकरण की वकालत कर रहे हैं। इन दलों का कहना है कि यदि जातिगत गणना को हकीकत में बदलना है, तो रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जिससे आरक्षण लाभों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित किया जा सके।

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट: एक लंबा इंतजार

2017 में गठित रोहिणी आयोग का उद्देश्य ओबीसी समुदाय के भीतर उप-वर्गीकरण की सिफारिश करना था। आयोग की अध्यक्षता दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी ने की थी। 2023 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी, लेकिन इसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। रिपोर्ट में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि कैसे कुछ जातियां ओबीसी कोटे का अधिक लाभ उठा रही हैं, जबकि अन्य उपेक्षित रह गई हैं। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक न होने से उन राजनीतिक दलों में असंतोष है, जो सामाजिक न्याय की पक्षधरता का दावा करते हैं।

बिहार और उत्तर प्रदेश से उठती आवाजें

बिहार में भाजपा के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने केंद्र सरकार से ओबीसी और एससी के उपवर्गीकरण पर जल्द निर्णय लेने की मांग की है। उनका कहना है कि राज्य में ‘अति पिछड़ा’ और ‘महा दलित’ वर्ग पहले से मौजूद हैं, और इन्हें केंद्र स्तर पर भी मान्यता मिलनी चाहिए। वहीं, निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने सुझाव दिया कि जातियों के वर्गीकरण में कई विसंगतियां हैं, जैसे कि कुछ जातियां जो OBC के तहत आती हैं, वे वास्तव में SC श्रेणी की हो सकती हैं।

राजभर और अन्य नेताओं की सक्रियता

उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और एसबीएसपी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर ओबीसी के उपवर्गीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया। राजभर लंबे समय से यह मांग करते आए हैं कि आरक्षण की वास्तविक आवश्यकता रखने वाले समुदायों को लाभ देने के लिए वर्गीकरण जरूरी है। वहीं, अपना दल (एस) और लोक जनशक्ति पार्टी जैसे कुछ सहयोगी दल इस विचार को लेकर सतर्क हैं और अभी तक खुलकर समर्थन नहीं कर रहे हैं।

‘कोटा के भीतर कोटा’: क्या यह व्यावहारिक है?

हरियाणा और कर्नाटक जैसे राज्यों में भाजपा पहले ही कोटा के भीतर कोटा की अवधारणा लागू कर चुकी है। उत्तर प्रदेश में भी 2018 में रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में एक समिति ने इसी तरह की सिफारिशें की थीं, जिसमें ओबीसी को ‘पिछड़े’, ‘अधिक पिछड़े’ और ‘सबसे अधिक पिछड़े’ वर्गों में बाँटने की बात कही गई थी। एससी वर्ग के लिए भी ‘दलित’, ‘अति दलित’ और ‘महा दलित’ जैसी श्रेणियों की परिकल्पना की गई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को इस उप-वर्गीकरण से लाभ मिल सकता है क्योंकि इससे वे जातियां, जो अब तक हाशिए पर थीं, पार्टी के प्रति समर्थन व्यक्त कर सकती हैं। साथ ही, यह कदम समाज के भीतर व्याप्त असमानताओं को दूर करने में सहायक हो सकता है।

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