
संपत्ति विवाद (Property Dispute) अब देशभर में एक आम समस्या बन गए हैं, और अदालतों में ऐसे मामलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन्हीं मामलों की पृष्ठभूमि में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने पति की मृत्यु के बाद पत्नी के संपत्ति पर अधिकार को लेकर ग़लतफ़हमियों को काफी हद तक दूर किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी को अपने मृत पति की संपत्ति पर उपयोग का अधिकार तो है, लेकिन ‘पूर्ण स्वामित्व’ नहीं है, खासकर जब पत्नी की स्वयं की आय न हो।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: अधिकार, लेकिन स्वामित्व नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह फैसला एक संपत्ति विवाद मामले की सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें चार भाई-बहन (तीन बेटे और एक बेटी) ने अन्य उत्तराधिकारियों के खिलाफ संपत्ति के बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया था। उनका तर्क था कि पिता ने अपनी वसीयत में संपत्ति अपनी पत्नी के नाम कर दी थी, जिससे उनका अधिकार सीमित हो गया। ट्रायल कोर्ट ने पिता की वसीयत के आधार पर संपत्ति की मालिक मां को माना, लेकिन वसीयत में यह भी लिखा था कि मां को केवल संपत्ति से किराया वसूलने और उपयोग का अधिकार है, बिक्री का नहीं।
हाईकोर्ट ने इस वसीयत को वैध मानते हुए कहा कि पत्नी को संपत्ति पर केवल जीवनभर आनंद लेने का अधिकार है, लेकिन पूर्ण स्वामित्व नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि महिला की कोई निजी आय नहीं है, तब भी वह संपत्ति का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन उसे बेचना या किसी और को देना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
वसीयत की शर्तें और उसका कानूनी प्रभाव
जनवरी 1989 में पति द्वारा बनाई गई वसीयत के अनुसार, पत्नी को उनकी संपत्ति से किराया वसूलने और उसका उपयोग करने की अनुमति थी। लेकिन वह इसे बेच नहीं सकती थी। पत्नी की मृत्यु के बाद संपत्ति को चार बेटों को छोड़कर बाकी सभी उत्तराधिकारियों में बांटने का निर्देश वसीयत में मौजूद था। 2012 में पत्नी की मृत्यु के बाद इस वसीयत के प्रावधान लागू हो गए।
इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया कि वसीयत में लिखी गई शर्तें संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती हैं और उनका पालन आवश्यक होता है। यह फैसला उन मामलों में भी मार्गदर्शक बन सकता है जहां वसीयत की भाषा अस्पष्ट हो।
पति की संपत्ति पर पत्नी के अधिकार की कानूनी स्थिति
यदि पति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो पत्नी को समान उत्तराधिकारी माना जाता है और उसे पति की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलता है।
यदि वसीयत मौजूद है और उसमें केवल संपत्ति के उपभोग का अधिकार दिया गया है, तो पत्नी को संपत्ति का स्वामित्व नहीं मिल सकता। यह अधिकार केवल उस संपत्ति के उपयोग तक सीमित होता है।
पति के जीवनकाल में पत्नी का पति की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता, वह अधिकार पुत्र और पुत्रियों का होता है।
यदि पति और पत्नी के बीच अलगाव हो गया हो, तो पत्नी को भरण-पोषण के लिए गुजारा भत्ता पाने का अधिकार होता है। यदि उसके पास रहने के लिए सुरक्षित स्थान न हो, तो वह पति की संपत्ति में निवास का दावा कर सकती है।
पति की स्व-अर्जित संपत्ति पर अधिकार
पति के जीवनकाल में उसकी स्व-अर्जित (Self-Acquired) संपत्ति पर पत्नी का कानूनी रूप से कोई अधिकार नहीं होता, सिवाय उस स्थिति के जब वह गुजारा भत्ता या निवास स्थान का दावा करे। यदि पति की मृत्यु हो जाती है और कोई वसीयत नहीं है, तो पत्नी उस संपत्ति की सह-वारिस बन जाती है।
पत्नी की संपत्ति पर पति का अधिकार
पत्नी के जीवित रहते उसके व्यक्तिगत (Personal) संपत्ति पर पति का कोई अधिकार नहीं होता। यदि पत्नी अपने नाम की संपत्ति पर वसीयत बनाकर पति के नाम कर दे, तब पति को उस पर अधिकार मिल सकता है। वसीयत के अभाव में यदि संतानें हैं, तो पहला अधिकार बच्चों का होता है।
क्या होता है स्त्रीधन (Stridhan)?
विवाह के समय उपहार स्वरूप मिले गहने, नकद धनराशि, कपड़े या अन्य मूल्यवान वस्तुएं स्त्रीधन (Stridhan) कहलाते हैं। इस पर केवल महिला का अधिकार होता है। यदि उसे उसके स्त्रीधन से वंचित किया जाता है, तो यह घरेलू हिंसा (Domestic Violence) की श्रेणी में आता है और इसके लिए कानूनन कार्रवाई की जा सकती है।