
उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में राष्ट्रगान को लेकर उपजे विवाद ने सामाजिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है। मामला तब तूल पकड़ गया जब मुस्लिम समुदाय के कुछ अभिभावकों ने स्कूल में गाया जाने वाला राष्ट्रगान (National Anthem) “नींद खराब करता है” कहते हुए इस पर आपत्ति जताई। इसके बाद स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग को हस्तक्षेप करना पड़ा।
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यह घटना उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की घिरोर तहसील स्थित प्राथमिक विद्यालय नयागांव की है। यहां के कुछ मुस्लिम अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन से राष्ट्रगान को लेकर लिखित शिकायत दर्ज कराई। उनका कहना था कि राष्ट्रगान में प्रयुक्त कुछ पंक्तियाँ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाती हैं और बच्चों की “नींद खराब होती है”। इस शिकायत के बाद स्कूल में अफरा-तफरी मच गई और जिला प्रशासन को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा।
राष्ट्रगान को लेकर विवाद के पीछे की वजह
शिकायत में अभिभावकों ने यह तर्क दिया कि राष्ट्रगान “जन गण मन” की कुछ पंक्तियाँ उनके धार्मिक विश्वास के विपरीत हैं। उनका कहना है कि वे केवल “इकबाल की तराना-ए-मिल्लत” को स्वीकार करते हैं, जिसमें अल्लाह की स्तुति की गई है, जबकि “जन गण मन” में राष्ट्र को सर्वोच्च बताया गया है। इसी कारण वे चाहते हैं कि उनके बच्चों को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य न किया जाए।
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शिक्षा विभाग और प्रशासन की प्रतिक्रिया
जैसे ही यह मामला सामने आया, शिक्षा विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रगान सभी भारतीय नागरिकों के लिए अनिवार्य है और इसका पालन प्रत्येक सरकारी विद्यालय में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस तरह की आपत्तियाँ संविधान की भावना और एकता के खिलाफ हैं।
प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस को भी अलर्ट किया ताकि किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक अशांति को रोका जा सके। हालांकि अभी तक किसी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं की गई है, लेकिन अधिकारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रगान से संबंधित नियमों में कोई छूट नहीं दी जा सकती।
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स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
स्थानीय ग्रामीणों और अन्य समुदायों ने इस घटनाक्रम पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि राष्ट्रगान भारतीय पहचान और गर्व का प्रतीक है, जिसे हर भारतीय नागरिक को सम्मान देना चाहिए। कुछ लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि यह आपत्ति जानबूझकर धार्मिक ध्रुवीकरण फैलाने के मकसद से की गई है।
सोशल मीडिया पर मचा बवाल
जैसे ही यह मामला सामने आया, सोशल मीडिया (social media) पर लोगों की प्रतिक्रियाओं का सैलाब आ गया। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर राष्ट्रगान को लेकर विवाद ट्रेंड करने लगा। लोग इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि क्या राष्ट्रगान जैसी संवेदनशील बातों पर भी अब धर्म के आधार पर आपत्ति जताई जाएगी?
कुछ यूजर्स ने यह भी कहा कि अगर स्कूल में राष्ट्रगान से “नींद खराब होती है”, तो यह बच्चों की शिक्षा और अनुशासन पर भी प्रश्नचिह्न है।
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संवैधानिक दृष्टिकोण और कानूनी पक्ष
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के तहत प्रत्येक नागरिक का यह मूल कर्तव्य है कि वह राष्ट्रगान और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करे। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार अपने निर्णयों में यह स्पष्ट कर चुका है कि राष्ट्रगान का सम्मान करना अनिवार्य है। इसके उल्लंघन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
इस संदर्भ में यह आपत्ति केवल एक स्थानीय विवाद नहीं, बल्कि एक व्यापक संवैधानिक प्रश्न बन जाती है। यदि इस तरह की आपत्तियों को अनुमति दी जाती है, तो देशभर में एक नकारात्मक मिसाल बन सकती है।
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शिक्षा और राष्ट्रभक्ति के बीच संतुलन
शिक्षाविदों का मानना है कि स्कूलों में राष्ट्रगान जैसे कार्यक्रम केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि बच्चों में राष्ट्रप्रेम और अनुशासन विकसित करने का माध्यम हैं। यदि धार्मिक या व्यक्तिगत भावनाओं के आधार पर इसे चुनौती दी जाती है, तो यह न केवल शिक्षा प्रणाली बल्कि देश की एकता पर भी चोट है।