
सरकारी नौकरी में संविदा (Contractual) से नियमित (Regular) सेवा में आए कर्मचारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जो सरकारी कर्मचारी शुरुआत में संविदा पर नियुक्त हुए थे और बाद में उनकी सेवा नियमित कर दी गई, वे पूरी सेवा अवधि के लिए पेंशन (Pension) के हकदार होंगे। अदालत का यह निर्णय न केवल बड़ी संख्या में कर्मचारियों को राहत देगा, बल्कि यह भविष्य के कई मामलों के लिए मिसाल भी बनेगा।
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नियम 2(G) पर नहीं, नियम 17 पर आधारित हुआ फैसला
यह फैसला केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 (Central Civil Services (Pension) Rules, 1972) की व्याख्या के संदर्भ में दिया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नियम 2(G), जो संविदा कर्मचारियों को पेंशन के दायरे से बाहर करता है, उसे नियम 17 द्वारा ओवरराइड किया जाता है।
नियम 17 कहता है कि जब एक कर्मचारी की सेवा नियमित हो जाती है, तो उसकी पूरी सेवा अवधि—संविदा और नियमित—पेंशन के लिए मान्य होती है। यह प्रावधान इस बात पर जोर देता है कि यदि कोई कर्मचारी संविदा के तौर पर कार्यरत था और बाद में उसे नियमित किया गया, तो उस पूरी अवधि को पेंशन के परिप्रेक्ष्य में शामिल किया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश बनाम शीला देवी मामला बना आधार
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य बनाम शीला देवी [2023 SCC Online SC 1272] केस का हवाला दिया। इस मामले में भी यह सवाल उठाया गया था कि क्या संविदा सेवा की अवधि को पेंशन के लिए जोड़ा जा सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पेंशन नियमों की भावना और उद्देश्य यह है कि किसी भी कर्मचारी की समर्पित सेवा को नकारा नहीं जा सकता, चाहे वह सेवा किस भी प्रकार (संविदा या नियमित) की रही हो।
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संविदा सेवा के दौरान भी दी गई सेवा का मिलेगा लाभ
न्यायालय ने यह भी कहा कि संविदा पर कार्य करने के दौरान कर्मचारी ने जो सेवाएं दी हैं, वे भी सरकार की सेवा ही मानी जाती हैं और इसे केवल संविदा कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पेंशन एक दीर्घकालिक अधिकार है और इसका उद्देश्य कर्मचारियों के बुढ़ापे को सुरक्षित करना है। इसलिए संविदा सेवा को नजरअंदाज करना न केवल अन्यायपूर्ण होता, बल्कि यह पेंशन की मूल भावना के भी खिलाफ होता।
कर्मचारियों के लिए राहत का संदेश
यह फैसला उन लाखों कर्मचारियों के लिए राहत की खबर लेकर आया है, जिन्होंने पहले संविदा पर काम किया और बाद में नियमित नियुक्ति प्राप्त की। पहले पेंशन विभाग अक्सर नियम 2(G) का हवाला देते हुए उनकी संविदा सेवा को पेंशन की गणना में शामिल नहीं करता था, जिससे कई रिटायर्ड कर्मचारियों को नुकसान उठाना पड़ता था। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्थिति बदल जाएगी और कर्मचारी अपनी पूरी सेवा का पेंशन लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
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भविष्य के विवादों के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन
इस निर्णय से न केवल वर्तमान मामलों को दिशा मिलेगी बल्कि भविष्य में आने वाले विवादों को भी सुलझाने में मदद मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख प्रशासनिक विभागों के लिए भी एक गाइडलाइन की तरह कार्य करेगा, जिससे संविदा से नियमित कर्मचारियों के मामलों में एक समान नीति अपनाई जा सके।
सरकार की नीतियों पर भी पड़ेगा असर
इस फैसले के बाद संभव है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने पेंशन नियमों और मानव संसाधन नीतियों में संशोधन करें, ताकि भविष्य में ऐसे कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह फैसला एक बार फिर यह साबित करता है कि न्यायपालिका सामाजिक और कर्मचारी हितों के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रही है।