
दिल्ली स्थित लाल किला (Red Fort) पर ऐतिहासिक दावा करते हुए खुद को मुगलों की वंशज बताने वाली महिला सुल्ताना बेगम को सुप्रीम कोर्ट में कड़ा जवाब मिला। मुख्य न्यायाधीश सीजेआई संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) की अध्यक्षता वाली पीठ ने न सिर्फ याचिका को “तर्कहीन” बताया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे दावे इतिहास के तथ्यों और कानून की वर्तमान व्याख्या के अनुरूप नहीं हैं। महिला का यह दावा कि ब्रिटिश शासन के दौरान उनके पूर्वजों से लाल किले पर कब्जा छीन लिया गया था, कोर्ट के सामने टिक नहीं पाया।
सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी: क्यों सिर्फ लाल किला?
सुनवाई के दौरान सीजेआई खन्ना ने तंज भरे अंदाज़ में पूछा कि अगर आप खुद को मुगलों की वंशज मानती हैं, तो फिर केवल लाल किला ही क्यों? ताजमहल (Taj Mahal) और फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? वे भी मुगलकालीन धरोहरें हैं। अदालत ने यह सवाल सिर्फ याचिका की सीमितता पर नहीं उठाया, बल्कि उसके तार्किक आधार को चुनौती देने के लिए उठाया।
दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दोहरा रुख
यह मामला पहली बार 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा था, जहां सिंगल जज बेंच ने इसे “अत्यधिक देरी” के आधार पर खारिज कर दिया। सुल्ताना बेगम ने लगभग 900 दिन बाद इस फैसले को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती दी, लेकिन वहाँ भी सुनवाई की कोई संभावना नहीं बनी। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां उन्होंने दलील दी कि मामला देरी के आधार पर खारिज किया जाए, गुण-दोष के आधार पर नहीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि याचिका पूरी तरह तर्कहीन और सुनवाई योग्य नहीं है।
इतिहास और कानून की टकराहट
सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में दावा किया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके पूर्वजों से जबरन लाल किले का कब्जा छीन लिया और बहादुर शाह ज़फर II को निर्वासित कर दिया। उनके अनुसार, इस ज़ब्त को आज भी भारत सरकार द्वारा मान्यता देना गलत है, और उन्होंने मुआवज़े के साथ लाल किले पर अधिकार की मांग की।
लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट किया कि 164 साल बाद किसी संपत्ति पर दावा करना, वह भी तब जब परिवार इस पूरे इतिहास से अवगत रहा हो, न्यायिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।