Supreme Court: सौदा रद्द होने पर बयाना वापस नहीं करना अपराध नहीं है, पूरा मामला जानें

सुप्रीम कोर्ट ने एक हालिया फैसले में ‘बयाना धन’ को अनुबंधीय गारंटी मानते हुए उसकी जब्ती को वैध ठहराया। इस निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि यदि विक्रेता और क्रेता के बीच अग्रिम बिक्री समझौते में समय की स्पष्ट शर्तें हों, और क्रेता उन्हें पूरा करने में असफल हो, तो विक्रेता द्वारा बयाना धन की जब्ती अनुचित नहीं मानी जाएगी।

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Supreme Court: सौदा रद्द होने पर बयाना वापस नहीं करना अपराध नहीं है, पूरा मामला जानें
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सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट कर दिया कि यदि कोई क्रेता अग्रिम बिक्री समझौते (Advance Sale Agreement – ATS) के तहत निर्धारित समय सीमा में शेष बिक्री प्रतिफल का भुगतान करने में विफल रहता है, तो विक्रेता द्वारा जमा की गई बयाना धन की राशि को जब्त किया जा सकता है। इस केस में, क्रेता द्वारा 20 लाख रुपये विक्रेता को बयाना धन के रूप में दिए गए थे, जिसे कोर्ट ने अनुबंध को बाध्यकारी बनाने के लिए ‘सिक्योरिटी डिपॉजिट’ के रूप में मान्यता दी।

बयाना धन की संवैधानिक वैधता और भारतीय अनुबंध अधिनियम की व्याख्या

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 74 को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या बयाना धन की जब्ती एक दंडात्मक कार्यवाही है। इस मामले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जहां बयाना धन अनुबंध के प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए भुगतान किया गया है, वहां धारा 74 लागू नहीं होती। धारा 74 केवल तब लागू होती है जब राशि का निर्धारण जुर्माने (penalty) के रूप में किया गया हो।

फतेह चंद बनाम श्री बालकिशन दास और अन्य निर्णयों की प्रासंगिकता

कोर्ट ने अपने फैसले में फतेह चंद बनाम श्री बालकिशन दास केस का हवाला देते हुए कहा कि जहां राशि को बयाना के रूप में माना गया है, वहां धारा 74 का प्रभाव सीमित हो जाता है। इसके अतिरिक्त, गोदरेज प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम अनिल कार्लेकर फैसले के माध्यम से यह भी दोहराया गया कि जब्ती खंड तभी अस्वीकार्य होगा जब वह अनुचित और एकतरफा हो। जबकि इस केस में समझौते की शर्तें दोनों पक्षों पर समान रूप से लागू थीं, और विक्रेता को भी भुगतान की राशि से दोगुना चुकाने का दायित्व था यदि लेन-देन विक्रेता की गलती से रद्द होता।

‘बयाना धन’ और ‘अग्रिम भुगतान’ के बीच मूलभूत अंतर

कोर्ट ने इस केस के माध्यम से एक और अहम पहलू पर रोशनी डाली—बयाना धन और अग्रिम भुगतान (Advance Payment) के बीच का अंतर। बयाना धन अनुबंध के प्रदर्शन की गारंटी देता है और यदि अनुबंध पूरा नहीं होता, तो यह राशि जब्त की जा सकती है। वहीं, अग्रिम भुगतान केवल खरीद मूल्य का आंशिक भुगतान होता है और इसकी जब्ती केवल तब ही संभव है जब यह स्पष्ट रूप से अनुबंध की किसी शर्त के तहत किया गया हो।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम शनमुगवेलु (2024) केस का हवाला देते हुए कहा, “बयाना धन अनुबंध के निष्पादन की निर्णायकता को चिह्नित करता है। यह सौदे की गंभीरता को दर्शाता है और इसे खरीद मूल्य से अलग समझा जाना चाहिए।”

कोर्ट का निष्कर्ष और अनुबंधीय सिद्धांत

कोर्ट ने यह कहा कि ATS के तहत 20 लाख रुपये की राशि जिसे “अग्रिम” कहा गया था, वस्तुतः “बयाना धन” था। यह स्पष्ट रूप से अनुबंध की निष्पादन तिथि से चार महीने की अवधि के भीतर शेष राशि के भुगतान की गारंटी के रूप में था। जब क्रेता इस शर्त का पालन करने में असफल रहा, तो विक्रेता द्वारा राशि की जब्ती कानूनी और न्यायसंगत मानी गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब्ती खंड का उद्देश्य केवल दंड नहीं बल्कि अनुबंधीय प्रदर्शन को सुनिश्चित करना था।

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