यहाँ बेटी जवान होते ही बन जाती है बीवी! पड़ोसी देश की हैरान करने वाली खौफनाक प्रथा

बांग्लादेश की मंडी जनजाति में सदियों पुरानी एक चौंकाने वाली परंपरा आज भी जीवित है—जहां सौतेला पिता अपनी सौतेली बेटी से विवाह करता है। क्या यह सांस्कृतिक विरासत है या मानवाधिकारों का उल्लंघन? जानिए इस रहस्यमयी प्रथा के पीछे की पूरी कहानी

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यहाँ बेटी जवान होते ही बन जाती है बीवी! पड़ोसी देश की हैरान करने वाली खौफनाक प्रथा
यहाँ बेटी जवान होते ही बन जाती है बीवी! पड़ोसी देश की हैरान करने वाली खौफनाक प्रथा

मंडी जनजाति में प्रचलित एक विशेष परंपरा, जिसमें सौतेला पिता अपनी सौतेली बेटी से विवाह करता है, इन दिनों चर्चा और विवाद का विषय बनी हुई है। बांग्लादेश के सुदूर इलाकों में बसे मंडी समुदाय की इस अनूठी सामाजिक रचना ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस परंपरा को लेकर जहां एक ओर इसे सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक संरचना का हिस्सा माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन और एक कुप्रथा के रूप में देखा जा रहा है।

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सांस्कृतिक विरासत या सामाजिक नियंत्रण?

मंडी समुदाय अपनी विशिष्ट भाषा, रीति-रिवाज और मातृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था के लिए जाना जाता है। यहां संपत्ति की उत्तराधिकार व्यवस्था महिलाओं के नाम पर होती है, और महिलाएं पारिवारिक शक्ति की धुरी मानी जाती हैं। लेकिन इसी सामाजिक ढांचे के भीतर एक परंपरा ऐसी भी है जो आधुनिक दृष्टिकोण से टकराती है—सौतेले पिता और बेटी के विवाह की यह व्यवस्था।

इस परंपरा के तहत जब कोई महिला विधवा होती है और दोबारा विवाह करती है, तो उसका नया पति उसकी पहली शादी से हुई बेटी से विवाह कर सकता है, जब वह बेटी बड़ी हो जाती है। समुदाय के लोग इसे इस तरह उचित ठहराते हैं कि यह विवाह महिला और उसकी बेटी दोनों को सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक सुरक्षा प्रदान करता है।

महिलाओं की स्वतंत्रता पर सवाल

इस परंपरा को लेकर सबसे बड़ा विवाद इस बात को लेकर है कि क्या यह लड़की की स्वतंत्र इच्छा और चयन के अधिकार का हनन है? कई मामलों में बेटियों को इस विवाह के लिए मानसिक या सामाजिक दबाव के तहत तैयार किया जाता है। एक घटना में मंडी समुदाय की एक युवती ने बताया कि उसके जैविक पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां ने दूसरी शादी की, और बाद में उसे उसी पुरुष से विवाह करने के लिए मजबूर किया गया। यह अनुभव उसके लिए मानसिक रूप से अत्यंत दुखद था क्योंकि वह अपने जीवनसाथी का चुनाव स्वयं करना चाहती थी।

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परंपरा और आधुनिकता की टकराहट

जैसे-जैसे आधुनिक शिक्षा और इंटरनेट की पहुंच ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में बढ़ रही है, वैसे-वैसे युवा वर्ग परंपरागत व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने लगा है। मंडी जनजाति के कई युवा अब इस प्रथा से बचने के लिए शहरी इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह प्रथा न केवल अप्राकृतिक है, बल्कि उनके आत्म-सम्मान और मानवाधिकारों के खिलाफ भी है।

सामाजिक सुरक्षा या शक्ति-संरक्षण?

मंडी समुदाय के वरिष्ठ जनों का तर्क है कि इस परंपरा से पारिवारिक संपत्ति बंटने से बचती है और सामाजिक ढांचे में स्थिरता बनी रहती है। वे इसे एक तरह की सुरक्षा व्यवस्था मानते हैं जिसमें महिला और उसकी बेटी दोनों को एक ही पुरुष द्वारा संरक्षण मिलता है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था महिला की आजादी को सीमित करती है और पुरुष सत्ता को बनाए रखने का एक जरिया भर है।

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कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण

हालांकि बांग्लादेश में ऐसी परंपराओं को कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है, लेकिन दूरदराज के क्षेत्रों में इनका पालन होता है। मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि इस तरह की प्रथाओं पर सरकार को सख्ती से रोक लगानी चाहिए और शिक्षा, जागरूकता और कानूनी सहायता के माध्यम से महिलाओं को सशक्त किया जाना चाहिए।

मंडी जनजाति की सामाजिक संरचना

मंडी समुदाय की मातृसत्तात्मक व्यवस्था अपने आप में दुर्लभ है, जहां महिलाएं न केवल संपत्ति की मालिक होती हैं, बल्कि पारिवारिक निर्णयों में भी उनकी भूमिका प्रमुख होती है। लेकिन इसके बावजूद, कुछ परंपराएं जैसे सौतेले पिता और बेटी का विवाह इस सामाजिक संरचना में विरोधाभास पैदा करती हैं। यह दर्शाता है कि हर परंपरा में सुधार की संभावना होती है और उसे समय के अनुसार बदलने की जरूरत होती है।

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