सरकारी नौकरी में झटका! मृतक आश्रित कोटे से नहीं मिलेगी ये नौकरी – HC का बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उन शासनादेशों को रद्द कर दिया है जो मृतक आश्रितों को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति की अनुमति देते थे। कोर्ट ने इन्हें संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21A के विरुद्ध माना और कहा कि यह समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन है। अब सहायक अध्यापक पद पर केवल प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया से ही नियुक्ति होगी।

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सरकारी नौकरी में झटका! मृतक आश्रित कोटे से नहीं मिलेगी ये नौकरी – HC का बड़ा फैसला
सरकारी नौकरी में झटका

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (High Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए दो प्रमुख शासनादेशों को असंवैधानिक करार दिया है, जिनके अंतर्गत मृतक आश्रितों को सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति दी जा रही थी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21A के प्रावधानों के खिलाफ है, जो समानता, अवसर की समानता और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करते हैं।

यह फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ द्वारा शैलेंद्र कुमार और अन्य पांच याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया गया। कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए यह माना कि शासनादेशों के जरिए सहायक अध्यापक जैसे महत्वपूर्ण लोक पद को मृतक आश्रित कोटे से भरना एक प्रकार की “बैक डोर एंट्री” है, जो समानता के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन है।

मृतक आश्रित कोटे पर नियुक्ति की सीमाएं

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 4 सितंबर 2000 और 15 फरवरी 2013 को जारी शासनादेशों के अंतर्गत मृतक आश्रितों को सहायक अध्यापक जैसे पदों पर सीधी नियुक्ति दी जा रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन दोनों आदेशों को रद्द करते हुए सरकार को सख्त निर्देश दिया है कि इन पर आगे कोई कार्यवाही न की जाए।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य केवल उस परिवार को तत्काल राहत देना है जो अचानक आय के स्त्रोत से वंचित हो गया हो, न कि किसी को उच्च पद प्रदान करना। सहायक अध्यापक का पद समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता है और उसे भरने के लिए एक खुली प्रतिस्पर्धा आवश्यक है।

समान अवसर और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी रेखांकित किया कि सहायक अध्यापक जैसे पदों पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यताएं और प्रक्रियाएं निर्धारित की गई हैं, जो कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की धारा 3 के अंतर्गत आती हैं। इनका उल्लंघन करते हुए सिर्फ मृतक आश्रित होने के आधार पर ऐसे पदों पर नियुक्ति देना शैक्षणिक गुणवत्ता और समानता, दोनों को प्रभावित करता है।

साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता पात्र हों तो उन्हें मृतक आश्रित सेवा नियमावली 1999 के अंतर्गत अन्य किसी उपयुक्त पद पर नियमानुसार नियुक्त किया जा सकता है, इसके लिए सरकार को तीन माह में निर्णय लेने को कहा गया है।

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