
ग्वालियर से सामने आए एक महत्वपूर्ण मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की युगल पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि पहला पति जीवित है और उससे विधिवत तलाक नहीं हुआ है, तो उस स्थिति में किया गया दूसरा विवाह वैध नहीं माना जा सकता। इस फैसले का असर खासकर सरकारी सेवाओं में अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) जैसी प्रक्रियाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
पहले विवाह का अस्तित्व—दूसरा विवाह अवैध घोषित
इस मामले की शुरुआत विनय कुमार (परिवर्तित नाम) से होती है, जो टेलीफोन इन्फॉर्मेशन विभाग में ड्राइवर पद पर कार्यरत थे। उन्होंने पहली पत्नी की मृत्यु के बाद वर्ष 2013 में दूसरी शादी की। दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद विनय कुमार का भी निधन हो गया। इसके पश्चात उनकी दूसरी पत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति की मांग की।
दूसरी पत्नी ने दावा किया कि विवाह पूरी विधि से हुआ था और समाज में उन्हें पति-पत्नी के रूप में जाना जाता रहा। उन्होंने यह भी बताया कि विभाग में विनय कुमार द्वारा उन्हें नॉमिनी के रूप में नामित किया गया था।
कुटुंब न्यायालय और हाईकोर्ट का रुख
अनुकंपा नियुक्ति का आवेदन जब विभाग द्वारा खारिज किया गया, तब उन्होंने कुटुंब न्यायालय, ग्वालियर का रुख किया। परंतु न्यायालय ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विनय कुमार की पहली पत्नी के साथ विवाह के विधिक बंधन समाप्त नहीं हुए थे।
कुटुंब न्यायालय के निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन वहां भी अपील को खारिज कर दिया गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि पहला विवाह अस्तित्व में था, और जब तक तलाक नहीं होता, तब तक दूसरा विवाह कानूनन मान्य नहीं हो सकता।
समाजिक परिप्रेक्ष्य बनाम कानूनी स्थिति
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि वह पति से आपसी सहमति से अलग रह रही थीं, और समाज में उन्हें पत्नी के रूप में मान्यता प्राप्त थी। भारत में कई बार समाजिक मान्यताएं कानूनी प्रक्रिया से अलग होती हैं। लेकिन कोर्ट ने दो टूक कहा कि सामाजिक मान्यता पर्याप्त नहीं है जब तक विवाह विधिक रूप से मान्य नहीं होता।