
1947 में भारत का विभाजन एक ऐतिहासिक और दर्दनाक अध्याय था, जिसने न सिर्फ राजनीतिक नक्शा बदला, बल्कि प्रशासनिक और सैन्य ढांचे में भी भारी उथल-पुथल मचाई। भारत-पाक बंटवारे के वक्त पाकिस्तान को कितने सैनिक मिले थे—यह सवाल आज भी इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए जिज्ञासा का विषय है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि फौज का बंटवारा कैसे हुआ, पाकिस्तान को कितने सैनिक और संसाधन मिले और इस पूरे घटनाक्रम का तत्कालीन भू-राजनीति पर क्या असर पड़ा।
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फौज के बंटवारे की पृष्ठभूमि
15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश बने। इसके साथ ही ब्रिटिश इंडियन आर्मी, जो ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन काम कर रही थी, उसका भी बंटवारा ज़रूरी हो गया। यह सेना एक विशाल और संगठित सैन्य बल थी, जिसमें लगभग 4 लाख सैनिक और अधिकारी शामिल थे। बंटवारे से पहले ब्रिटिश हुकूमत ने फैसला लिया कि सेना का भी दो हिस्सों में विभाजन होगा, एक हिस्सा भारत को और दूसरा पाकिस्तान को मिलेगा।
पाकिस्तान को कितने सैनिक मिले?
भारत-पाक बंटवारे के समय पाकिस्तान को लगभग 1,50,000 सैनिक मिले थे, जो कुल फौज का करीब 32% हिस्सा था। शेष सेना भारत के पास रही। पाकिस्तान को मिलने वाले सैनिकों में अधिकांश मुस्लिम सैनिक और अफसर थे, जिन्हें नए बने देश की सीमाओं और आंतरिक सुरक्षा को संभालने की जिम्मेदारी दी गई।
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हालांकि, शुरूआती दौर में पाकिस्तान के पास सैन्य ढांचा और लॉजिस्टिक्स बहुत सीमित थे। उसे एक नई सेना खड़ी करनी थी जिसमें न तो पर्याप्त ट्रेनिंग सुविधाएं थीं और न ही युद्ध उपकरण या कार्यालयों का कोई पुख्ता ढांचा।
कैसे हुआ फौज का बंटवारा?
ब्रिटिश हुकूमत ने इस विभाजन के लिए एक विशेष आर्मी पार्टिशन कमेटी (Army Partition Committee) का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता फील्ड मार्शल क्लॉड ऑकिनलेक (Field Marshal Claude Auchinleck) ने की।
फौज के बंटवारे का आधार धर्म और भौगोलिक स्थिति थी। मुस्लिम सैनिकों को पाकिस्तान भेजा गया, जबकि हिंदू और सिख सैनिक भारत में रहे। वहीं अफसरों को विकल्प दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक देश की सेवा चुन सकते हैं।
इसके अलावा सैन्य संसाधनों का बंटवारा भी हुआ। टैंक, तोप, ट्रक, हथियार, गोला-बारूद जैसे युद्धसामग्री का भी अनुपात के हिसाब से विभाजन किया गया।
सैन्य संस्थानों और लॉजिस्टिक ढांचे का विभाजन
भारत में अधिकतर सैन्य संस्थान और ट्रेनिंग सेंटर्स जैसे देहरादून का इंडियन मिलिट्री अकादमी (IMA), वेलिंगटन का डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज आदि मौजूद थे, इसलिए पाकिस्तान को अपने सैन्य ढांचे को शून्य से खड़ा करना पड़ा।
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पाकिस्तान को सेना के बजट का करीब 17% हिस्सा मिला, जो उस वक्त के हिसाब से 75 करोड़ भारतीय रुपये के आसपास था। लेकिन इस पैसे की अदायगी भी विवादों में रही और बाद में महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद भारत सरकार ने यह राशि पाकिस्तान को जारी की।
विभाजन के बाद की चुनौतियाँ
पाकिस्तान को न सिर्फ सीमित संसाधनों के साथ अपनी सेना बनानी पड़ी, बल्कि उसे बहुत जल्द 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी उतरना पड़ा, जो कश्मीर को लेकर हुआ था।
वहीं भारत के पास बेहतर लॉजिस्टिक सपोर्ट, सैन्य अनुभव और अफसर वर्ग की अधिकता थी। हालांकि भारत को भी विस्थापन और दंगों की वजह से आंतरिक शांति बनाए रखने में सेना का प्रयोग करना पड़ा।
विभाजन का दीर्घकालिक असर
भारत और पाकिस्तान के बीच हुई फौज की यह बँटवारा सिर्फ संख्या और संसाधनों का नहीं था, यह रणनीतिक दृष्टिकोण, सैन्य संस्कृति और राष्ट्रीय सुरक्षा के भविष्य का बँटवारा भी था। आज भी दोनों देशों की सेनाओं में उस विभाजन की झलक दिखती है।
जहां भारत की सेना ने विविधता और पेशेवर क्षमता के बल पर खुद को विश्वस्तरीय फौज में बदल लिया, वहीं पाकिस्तान की सेना ने भी धीरे-धीरे खुद को संगठित किया और देश की राजनीति में भी बड़ी भूमिका निभाई।