
नजदीकी गांव झलूर के ग्राउंड पार्क में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की बैठक ने 20 मई की देशव्यापी हड़ताल को लेकर मनरेगा मजदूरों के संकल्प को और मजबूत बना दिया। इस ऐतिहासिक दिन को मनरेगा मजदूर यूनियन पंजाब सीटू (CITU) के बैनर तले मनाया गया, जहां मौजूद मजदूरों ने “काम बंद करके आंदोलन तेज़ करने” का नारा बुलंद किया। बैठक के दौरान शिकागो के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें आज के संघर्षों की प्रेरणा बताया गया।
मनरेगा मजदूरों की चेतावनी और आंदोलन का संकल्प
इस बैठक की सबसे बड़ी घोषणा यह रही कि 20 मई को देशव्यापी हड़ताल में मनरेगा मजदूर बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। मंच से सीटू के राज्य सचिव साथी शेर सिंह फरवाही और जिला सचिव निर्मल सिंह झलूर ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई चार नई श्रम संहिताएं (Labour Codes) वास्तव में मजदूरों की गुलामी को वैध बनाने की कोशिश हैं। 29 मौजूदा श्रम कानूनों को एक झटके में खत्म कर देने वाली इन संहिताओं ने ट्रेड यूनियन अधिकारों, आठ घंटे के कार्य-दिवस, सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, और सम्मानजनक उजरत (wages) जैसे अधिकारों को गहरा आघात पहुँचाया है।
श्रम कानूनों की रक्षा और नई मांगें
बैठक में जोर दिया गया कि मजदूरों को केवल अतीत के संघर्षों को याद करके नहीं बैठना, बल्कि वर्तमान में हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी है। मनरेगा जैसे योजनाओं में काम करने वाले श्रमिकों की पहले से ही हालत नाजुक है, और अब इन नई श्रम संहिताओं के लागू होने से उनकी रोज़गार गारंटी और न्यूनतम मजदूरी का अधिकार भी खतरे में पड़ गया है।
बैठक में यह भी मांग की गई कि न्यूनतम मासिक वेतन 26,000 रुपये और दिहाड़ी 700 रुपये की जाए, पेंशन को 10,000 रुपये मासिक तक बढ़ाया जाए, और ठेके पर काम कर रहे कच्चे कर्मचारियों को पक्का किया जाए।
स्थानीय नेतृत्व और समर्थन की भूमिका
गांव के सरपंच माननीय परगट सिंह लाली ने पंचायत की ओर से मजदूरों को समर्थन देते हुए वादा किया कि पंचायत हमेशा उनके साथ खड़ी रहेगी। वहीं किसान नेता चरणजीत सिंह ने कहा कि किसान और मजदूर एक ही वर्ग के हैं और दोनों को मिलकर इन नीतियों का विरोध करना होगा। यह एकजुटता ही शोषणकारी नीतियों के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार है।
आंदोलन का नया चेहरा बनते मनरेगा मजदूर
मनरेगा मजदूरों की इस एकजुटता से यह साफ है कि अब यह वर्ग सिर्फ सरकारी योजनाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़ने के लिए तैयार है। ‘चार लेबर कोड रद्द कराके रहेंगे’ जैसे नारों के बीच मजदूरों ने संकल्प लिया कि जब तक इन संहिताओं को वापस नहीं लिया जाता, संघर्ष जारी रहेगा।