
मध्य प्रदेश में निजी स्कूलों की मान्यता रद्द होने की घटनाएं शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। धार जिले में 671 निजी स्कूलों ने मान्यता के लिए आवेदन किया था, जिनमें से 584 को मान्यता प्रदान की गई, जबकि बाकी स्कूल मान्यता के निर्धारित मापदंडों पर खरे नहीं उतर सके। इसके चलते बीआरसी (ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर) और डीपीसी (डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर) स्तर पर 87 स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी गई।
ये स्कूल अब मान्यता के लिए अंतिम प्रयास के रूप में कलेक्टर के पास अपील कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि इन स्कूलों के सैकड़ों छात्रों का भविष्य किसके भरोसे छोड़ा जाएगा?
मान्यता रद्द होने के प्रमुख कारण
इन स्कूलों की मान्यता रद्द होने के पीछे कई अहम कारण हैं, जैसे कि आवश्यक दस्तावेजों की कमी, स्कूल भवन और खेल मैदान का अभाव, अग्निशमन सुरक्षा उपकरणों की अनुपस्थिति, और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी। इसके अलावा छात्रों की जानकारी को यू-डाइस प्लस पोर्टल पर अपडेट नहीं किया गया, जिससे डिजिटल रिकॉर्ड में भारी गड़बड़ी देखने को मिली।
फायर सेफ्टी, शौचालय की सुविधा, रजिस्टर्ड किरायानामा, और RTE एक्ट के नियमों का पालन जैसे मापदंड पूरे न करना भी स्कूलों की मान्यता खत्म करने का आधार बने।
Apaar ID: तकनीकी अड़चनों में उलझा डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम
सरकार द्वारा छात्रों की Apaar ID (12-अंकीय यूनिक आईडी) योजना लागू की गई है, जिससे छात्र की शैक्षणिक जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध हो सके। लेकिन यह योजना आधार अपडेशन की समस्या में फंस गई है। छात्रों के आधार कार्ड और स्कूल रिकॉर्ड में नाम, जन्मतिथि या सरनेम की स्पेलिंग में अंतर के कारण हजारों ID रिजेक्ट हो चुकी हैं।
धार जिले में 3,27,421 छात्रों के लिए ID बननी थी, लेकिन अब तक सिर्फ 2,06,734 ID बन पाई हैं। आधार सेंटरों की कमी और तकनीकी दिक्कतों के चलते कार्य में देरी हो रही है। पोर्टल बार-बार ठप होने से स्कूल प्रशासन और विभाग दोनों ही असहाय नजर आ रहे हैं।
कैसे होती है जांच और निर्णय
स्कूलों को मान्यता देने की प्रक्रिया डिजिटल पोर्टल से शुरू होती है, जहां वे आवेदन लॉक करते हैं। इसके बाद बीआरसी निरीक्षण कर स्कूलों की स्थिति रिपोर्ट डीपीसी को भेजता है। डीपीसी स्तर पर फील्ड वैरिफिकेशन होता है। यदि मापदंडों की पूर्ति नहीं होती, तो मान्यता रद्द कर दी जाती है। रद्द किए गए स्कूलों को कलेक्टर के समक्ष अपील करने का अंतिम अवसर दिया जाता है।
भविष्य की राह
इस पूरी स्थिति में सबसे अधिक नुकसान उन छात्रों का हो रहा है जो इन स्कूलों में अध्ययनरत हैं। उनकी पढ़ाई, परीक्षा और भविष्य अधर में लटक गया है। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ स्कूल प्रशासन की लापरवाही है या शिक्षा विभाग की भी जिम्मेदारी बनती है? समय रहते सुधारात्मक कदम न उठाए गए, तो यह संकट और भी गहराता जाएगा।