
सुप्रीम कोर्ट ने Scheduled Castes और Scheduled Tribes यानी एससी-एसटी समुदाय के लिए लागू आरक्षण व्यवस्था पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो भविष्य की सामाजिक न्याय नीतियों को नई दिशा देगा। कोर्ट ने आरक्षण में आरक्षण यानी कोटा में कोटा की व्यवस्था को वैध करार दिया है और साथ ही यह स्पष्ट किया है कि राज्य सरकारें एससी-एसटी वर्गों के भीतर उपवर्गीकरण कर सकती हैं ताकि ज्यादा जरूरतमंद वर्गों तक आरक्षण का लाभ पहुँचाया जा सके। यही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा कि एससी-एसटी आरक्षण के अंतर्गत क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किया जाना जरूरी है।
2004 का ईवी चिनैया फैसला पलटा
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में दिए गए ईवी चिनैया फैसले को गलत ठहराते हुए पलट दिया है। उस फैसले में यह कहा गया था कि एससी और एसटी एक समान समूह हैं और उनमें उपवर्गीकरण संभव नहीं है। लेकिन अब सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है कि राज्य सरकारें उपवर्गीकरण कर सकती हैं, जिससे आरक्षण का लाभ समान रूप से वितरित हो सके।
पंजाब मामला बना केंद्र बिंदु
इस ऐतिहासिक सुनवाई की शुरुआत पंजाब के एक मामले से हुई थी, जहाँ सरकार ने एससी समुदाय के भीतर वाल्मीकि और मजहबी सिख समुदाय के लिए 50% आरक्षित सीटें निर्धारित की थीं। इस पर उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, और इसी के आधार पर यह निर्णय लिया गया।
क्रीमीलेयर की पहचान पर जोर
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वे एससी और एसटी वर्गों के उपवर्गीकरण करें, बशर्ते यह तर्कसंगत आधार पर हो। उन्होंने संविधान के Article 14 और Article 16(4) का हवाला देते हुए कहा कि समानता के अधिकार का अर्थ है कि असमान लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य को यह साबित करना होगा कि उपवर्गीकरण किए जाने वाले समूह सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व रखते हैं। जस्टिस बीआर गवई ने भी क्रीमीलेयर की पहचान और उन्हें आरक्षण से बाहर करने की नीति बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
100% उपवर्गीकरण नहीं हो सकता
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि उपवर्गीकरण करते समय राज्य सरकारें किसी एक उपवर्ग को आरक्षण का संपूर्ण लाभ नहीं दे सकतीं। इसका अर्थ है कि मूल एससी वर्ग और उपवर्ग—दोनों को समान रूप से प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि क्रीमीलेयर की पहचान का मापदंड OBC के क्रीमीलेयर से अलग होना चाहिए।
जजों के विचार में विविधता
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई और कहा कि उपवर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 का उल्लंघन करता है, क्योंकि राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में कोई भी संशोधन केवल संसद कर सकती है, न कि राज्य सरकारें।