
Vat Savitri Vrat भारत में सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र और आस्था से जुड़ा पर्व है, जिसे हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पूरे विधि-विधान से रखा जाता है। इस पर्व को अखंड सौभाग्य (Akhanda Saubhagya) का प्रतीक माना जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य पति की दीर्घायु और आरोग्यता की कामना करना होता है। साल 2025 में यह पर्व मई महीने में मनाया जाएगा, जिसे लेकर श्रद्धालु महिलाओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है।
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ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाएगा Vat Savitri Vrat
Vat Savitri Vrat का आयोजन हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस बार यह शुभ दिन मई महीने में पड़ रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर वट यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवों का वास माना गया है, इसलिए इसकी पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा से जुड़ा पर्व
Vat Savitri Vrat की कथा सावित्री और सत्यवान के पौराणिक प्रसंग से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने तप, समर्पण और दृढ़ संकल्प से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। तभी से यह पर्व स्त्रियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया और महिलाओं ने इसे पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए मनाना शुरू किया।
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व्रत की विधि-विधान और परंपरा
Vat Savitri Vrat को लेकर विशेष विधि-विधान होते हैं। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं और पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। इसके बाद वे वट वृक्ष की पूजा करती हैं, वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा करती हैं और पूजा सामग्री चढ़ाकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। यह पूजा धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक दृष्टि से भी महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
धार्मिक मान्यता और आध्यात्मिक महत्व
Vat Savitri Vrat के बारे में शास्त्रों में वर्णित है कि यह व्रत करने से पति की उम्र लंबी होती है, साथ ही पारिवारिक जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य बना रहता है। यह व्रत महिलाओं के आत्मबल और संकल्प शक्ति का भी प्रतीक है। आधुनिक युग में भी यह पर्व महिलाओं की आध्यात्मिक जागरूकता और संस्कृति से जुड़ाव को दर्शाता है।
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पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है वट वृक्ष की पूजा
Vat Savitri Vrat में वट वृक्ष की पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। वट वृक्ष एक लंबे समय तक जीवित रहने वाला वृक्ष है, जो बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन (Oxygen) प्रदान करता है और वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में सहायक होता है। इसलिए वट वृक्ष की पूजा के साथ-साथ इसके संरक्षण का संदेश भी इस पर्व के माध्यम से दिया जाता है।
बदलते समय के साथ बनी हुई है परंपरा की महत्ता
हालांकि आज के समय में जीवनशैली में बदलाव आया है, लेकिन Vat Savitri Vrat की परंपरा अब भी उतनी ही प्रासंगिक और श्रद्धा से भरी हुई है। यह पर्व आज की पीढ़ी को संस्कार, निष्ठा और परिवार के प्रति समर्पण का पाठ पढ़ाता है। व्रत करने वाली महिलाएं पारंपरिक परिधान में सज-धजकर पूरे श्रद्धाभाव से इस अनुष्ठान को संपन्न करती हैं।
व्रत से जुड़ी सामाजिक एकजुटता
Vat Savitri Vrat केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकजुटता का भी प्रतीक बन गया है। गांवों और शहरों में महिलाएं सामूहिक रूप से वट वृक्ष के पास एकत्रित होती हैं और मिलजुलकर पूजा करती हैं। इस दिन सामूहिक पूजा और कथा वाचन का आयोजन भी होता है, जो सामुदायिक भावना को प्रोत्साहित करता है।