
अजंतापुरम योजना का नाम एनसीआर क्षेत्र में रहने वाले हजारों परिवारों के लिए एक उम्मीद की तरह जुड़ा रहा है, मगर अफसोस कि यह उम्मीद अब तक पूरी नहीं हो सकी है। आवास एवं विकास परिषद द्वारा वर्ष 1994 में हिंडन एयरपोर्ट के समीप बसे गांवों—सिकंदरपुर, निस्तौली, भोपुरा, बेहटा हाजीपुर और पसौंडा—की जमीन पर एक आधुनिक आवासीय योजना अजंतापुरम के नाम से शुरू करने की घोषणा की गई थी। इस योजना के लिए 11 सहकारी आवास समितियों ने लगभग 135 एकड़ भूमि बिना एवार्ड के परिषद को सौंप दी थी। वादा था कि दो वर्षों के भीतर विकास कार्य शुरू हो जाएगा, लेकिन 31 साल बीत जाने के बाद भी परियोजना ज़मीन पर उतर नहीं पाई है।
इस लंबे इंतजार ने उन हजारों लोगों की उम्मीदें तोड़ दी हैं जिन्होंने लोन लेकर जमीन का योगदान दिया था। यह योजना न केवल परिषद की प्रशासनिक विफलताओं का उदाहरण बन चुकी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे एक आशाजनक आवासीय परियोजना महज कागजों में सिमट कर रह गई।
योजना की शुरुआत और अधूरी उम्मीदें
1994 में जब परिषद ने समितियों से जमीन ली, तब यह आश्वासन दिया गया था कि विकास शुल्क लेकर 80% जमीन उन्हें लौटा दी जाएगी और उस पर भूखंड तैयार कर सदस्यों को दिए जाएंगे। 1997 में योजना का नोटिफिकेशन भी कर दिया गया। लेकिन समय बीतता गया और योजना अपनी प्रारंभिक अवस्था से आगे नहीं बढ़ सकी।
समितियों का आरोप है कि परिषद ने ना केवल उनकी उम्मीदों के साथ खिलवाड़ किया, बल्कि पारदर्शिता की भी भारी कमी रही। एक समिति का नक्शा पास करना और दूसरी को कब्जा देना, जबकि पूरी योजना का लेआउट (Layout) ही अभी फाइनल नहीं हुआ था, गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
प्रमुख अड़चनें और प्रशासनिक जटिलताएं
अजंतापुरम योजना करीब 190 एकड़ क्षेत्रफल में विकसित होनी है। जहां एक ओर 135 एकड़ जमीन समितियों ने दी, वहीं शेष परिषद द्वारा अधिग्रहीत की गई थी। इस क्षेत्र में जीडीए, नगर निगम, ग्राम सभा और पीडब्ल्यूडी जैसी कई संस्थाओं की भूमि सम्मिलित है, जिससे स्वामित्व विवाद और प्रशासनिक समन्वय की समस्याएं बार-बार सामने आती रहीं।
लेआउट बार-बार जमीन की उपलब्धता और व्यावसायिक भूखंडों के आरक्षण के चलते बदलना पड़ा। फीजिबिलिटी रिपोर्ट को भी कई बार संशोधित करना पड़ा। इस वर्ष जब मुख्यालय को नया लेआउट भेजा गया, तो एयरपोर्ट से लगते संपर्क मार्ग के निकट व्यवसायिक उपयोग की भूमि के आरक्षण ने एक बार फिर योजना में देरी कर दी।
जिन्होंने दी जमीन, वे आज भी खाली हाथ
जन विहार सहकारी आवास समिति लिमिटेड के सचिव आरबी शर्मा का कहना है कि परिषद ने उनकी जमीन लेने के बाद इस योजना को कभी गंभीरता से नहीं लिया। जिन लोगों ने अपने सपनों के घर के लिए लोन लिया था, वे आज भी इंतजार कर रहे हैं। कुछ सदस्यों की तो उम्र ढल चुकी है, और कुछ अब इस दुनिया में नहीं हैं।
लोक विहार समिति के सचिव आरपी अरोरा बताते हैं कि अब सदस्यों की उम्र 70 वर्ष के करीब हो गई है। जब जमीन दी थी तब लोग 35-45 वर्ष के थे। समिति ने सैकड़ों पत्राचार किए, दर्जनों मीटिंग्स में हिस्सा लिया, लेकिन परिणाम शून्य रहा।