
हाल ही में ‘सिंदूर’ शब्द फिर से चर्चा में आ गया है, लेकिन इस बार कारण है भारत का साहसिक सैन्य अभियान – ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor)। पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान और पीओके में स्थित 9 आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की है, जिसे इस सांस्कृतिक प्रतीक के नाम पर किया गया। सिंदूर भारतीय संस्कृति में एक पवित्र और शक्तिशाली प्रतीक है। इसका धार्मिक, चिकित्सकीय और सामाजिक महत्व सदियों से स्थापित है, लेकिन इसके पीछे छिपे विज्ञान और परंपरा को समझना भी जरूरी है।
भारतीय संस्कृति में सिंदूर का महत्व
सिंदूर को केवल सौंदर्य या सुहाग की निशानी के रूप में देखना एक सीमित दृष्टिकोण होगा। वास्तव में, यह एक गहन सांस्कृतिक प्रतीक है जो महिला के सौभाग्य, ऊर्जा और मानसिक स्वास्थ्य से गहराई से जुड़ा है। हिंदू परंपराओं में विवाहित महिलाएं सिंदूर को मांग में भरकर न केवल अपने वैवाहिक जीवन को सम्मान देती हैं, बल्कि यह क्रिया स्वयं में एक ऊर्जा संतुलन क्रिया बन जाती है।
सिंदूर लगाने के पीछे छिपा विज्ञान
माथे के जिस भाग पर सिंदूर लगाया जाता है, वहां एक विशेष नस होती है जो मस्तिष्क के अग्रभाग तक जाती है। इस हिस्से को ‘ब्रह्मरंध्र’ कहा जाता है – यह वह स्थान है जहां से ऊर्जा का प्रसारण होता है। सिंदूर लगाने से यह भाग उत्तेजित होता है जिससे शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। यह क्रिया मानसिक शांति, अच्छी नींद और सिरदर्द जैसे विकारों में राहत देने का कार्य करती है। इसके अलावा यह ब्लड प्रेशर को संतुलित रखने, चिड़चिड़ापन कम करने और मस्तिष्क को सक्रिय बनाए रखने में भी सहायक होती है।
सिंदूर का आध्यात्मिक और चिकित्सकीय पक्ष
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सिंदूर न केवल सौभाग्य का प्रतीक है, बल्कि इसे लगाने से रक्त संचार में सुधार होता है और यह मस्तिष्क की ग्रंथियों को उत्तेजित करता है। आयुर्वेद में इसे उष्ण गुण वाला माना गया है, जिससे यह शरीर में गर्मी का संचार करता है और मानसिक थकावट दूर करता है। इसके नियमित उपयोग से याददाश्त बेहतर होती है और उम्र बढ़ने के प्रभाव जैसे झुर्रियां आदि भी कम होती हैं।
कैसे बनता है असली सिंदूर
बाजार में मिलने वाला सिंदूर अक्सर रसायनों से युक्त होता है, लेकिन असली और पारंपरिक सिंदूर को कुमकुम ट्री के फल से तैयार किया जाता है। यह एक पूरी तरह प्राकृतिक तरीका है जिसमें किसी भी प्रकार का कैमिकल नहीं होता। कुमकुम के फल पहले हरे रंग के होते हैं और पकने पर लाल हो जाते हैं। इन्हें पीसकर जो लाल रंग निकलता है, वही शुद्ध सिंदूर होता है। इसका उपयोग प्राचीन समय से ही धार्मिक अनुष्ठानों और दांपत्य जीवन की स्थिरता के लिए होता आया है।
सिंदूर और महिलाओं की ऊर्जा
सिंदूर लगाने की प्रक्रिया न केवल महिला के रूप और सौंदर्य को निखारती है, बल्कि यह उसके मानसिक संतुलन को भी मजबूत बनाती है। यह एक प्रकार की मानसिक कंडीशनिंग भी है जो उसे अपने संबंधों के प्रति प्रतिबद्धता का अहसास कराती है और सामाजिक तौर पर एक स्थिर पहचान भी देती है।